पिघल रही है पहाड़ों की बर्फ, तुरंत कदम उठाए दुनिया… भारत-चीन समेत 8 देशों ने एक साथ की मांग

काठमांडू: इस साल हिमखंडों के व्यापक नुकसान के विनाशकारी वैश्विक प्रभाव के बारे में चेतावनी देते हुए पर्यावरण विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं ने हिमनदों को बचाने के लिए जलवायु कार्रवाई में तत्काल तेजी लाने का आह्वान किया है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) और नेपाल के वन और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में ‘हिंदुकुश हिमालय क्षेत्र’ के आठ देशों के मंत्रियों, राजनयिकों, वरिष्ठ नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया।

हिंदुकुश-हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में आठ देश शामिल हैं जिनमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमा, नेपाल और पाकिस्तान शामिल हैं। ‘इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव’ के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार जेम्स किर्खम ने कहा, ”अगर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो दुनिया भर में पर्वतीय हिमनदों की क्षति निश्चित है।”

आईसीआईएमओडी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, आईसीआईएमओडी के महानिदेशक पेमा ग्याम्त्शो ने कहा, ”हमें अब पृथ्वी को ऐसी स्थिति की ओर बढ़ने से रोकने के लिए कार्रवाई करनी होगी जिसके आगे वह जीवन को कायम नहीं रख सकती। दो अरब लोग अपने भोजन और जल सुरक्षा के लिए इन पर्वतों में मौजूद पानी पर निर्भर हैं।” किर्खम ने कहा, ”इसके परिणामस्वरूप और आर्कटिक तथा अंटार्कटिक में बर्फ के पिघलने के विनाशकारी नुकसान से दुनिया को चिंतित होना चाहिए।”

हिमनदों के पिघलने से 2050 तक ढाका, कराची, शंघाई और मुंबई के बड़े हिस्से समेत कई क्षेत्रों के डूबने का खतरा है। किर्खम ने कहा, ”यह उस जलवायु प्रणाली को अस्थिर कर देगा जिसने पृथ्वी को सहस्राब्दियों तक जीवन योग्य बनाए रखा है और यदि उत्सर्जन में वर्तमान वृद्धि जारी रही तो इसके परिणामस्वरूप ढाका, मुंबई, कराची और शंघाई के बड़े हिस्से डूब जाएंगे।

उन्होंने कहा कि 2050 तक समुद्र के स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप सिर्फ बांग्लादेश में 1.8 करोड़ शरणार्थी हो जाएंगे। वैज्ञानिकों ने हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र के बर्फीले स्थानों का अध्ययन करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया, जिसके पिघलने से भूस्खलन सहित बड़ी आपदाओं का खतरा है।

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