लोग नियमों का पालन करें तो बगैर राजा के भी चल सकता है राज्य

आचार्य चाणक्य ने जीवन दर्शन को लेकर कई सिद्धांत दिए हैं, जिनकी चर्चा आज भी पूरे विश्व में होती है। आचार्य ने व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ राज्य, समाज और व्यक्ति के व्यवहार को लेकर भी कई बातें कही हैं। उन्होंने कई श्लोकों में राज्य के लिए राजा के महत्व और बगैर राजा के राज्य के बारे में जिक्र किया है। ऐसे में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि बगैर राजा के राज्य में प्रजा का कर्तव्यनिष्ठ होना बेहद जरूरी है।

आचार्य चाणक्य  के मुताबिक, किसी कारणवश यदि राजा का अभाव भी हो जाए तो ऐसी स्थिति में यदि प्रजा नीतियुक्त कार्य करती है तो राज्य के कार्य अच्छे ढंग से चलते रहते हैं। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जब राज्य कर्मचारी और प्रजा के लोग राष्ट्र के संबंध में अपने कर्तव्य को भली प्रकार समझते हैं तो राज्य शासन चलाने में कोई कठिनाई नहीं होती। यदि प्रजा और अधिकारियों को अपने कर्तव्य का बोध है तो राजकार्य सुव्यवस्थित ढंग से चल सकता है।

प्रकृति कोपः सर्वकोपेभ्यो गरीयान्

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि राज्य के खिलाफ प्रकृति का क्रोध सब क्रोधों से भयंकर होता है। एक राजा से दूसरा राजा क्रोधित हो जाए, तो उससे निपटा जा सकता है। कोई राज्य कर्मचारी या मंत्री रुष्ट हो जाए तो उसे समझा-बुझाकर अपने पक्ष में किया जा सकता है। प्रजा नाराज हो जाए तो उसे अत्यधिक सुख-सुविधा प्रदान कर प्रसन्न किया जा सकता है, लेकिन यदि प्रकृति कुपित हो जाए और कहीं भूकंप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चक्रवात आ जाए तो राजा के लिए यह आपदा का टालना मुश्किल हो जाता है।

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