IIT भिलाई के वैज्ञानिकों ने किया स्मार्ट इंसुलिन का अविष्कार, डायबिटीज के मरीजों को होगा फायदा

दुर्ग। इस भागदौड़ की जिंदगी में ज्यादातर लोग अपने दिनचर्या और शरीर को वह जरूरी आहार नहीं दे पाते. जिसकी वजह से हमारे शरीर में कई तरह की बीमारियां जन्म लेने लगती है. उन्हीं बीमारियों में से एक बीमारी डायबिटीज है. डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिससे राहत पाने के लिए हर 12 घंटे में इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है. लेकिन आईआईटी भिलाई (IIT Bhilai) के वैज्ञानिकों (Scientists) ने ऐसा आविष्कार किया है. जिससे अब डायबिटीज (Diabetes) के मरीजों को 12 घंटे में नहीं बल्कि 2 दिनों के अंतराल में इंसुलिन ले सकेंगे. इस इंसुलिन का नाम है स्मार्ट इंसुलिन(Smart Insulin).

डायबिटीज के मरीजों को निर्भर रहना पड़ता है, इंसुलिन पर

आधुनिक जीवनशैली को देखते हुए डायबीटीज के खतरे को कम करके नहीं आंका जा सकता. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार डायबीटीज, लोगों कि मौत का प्रमुख कारणों में से एक हो सकता है और आने वाले दशकों में यह एक वैश्विक महामारी बन सकती है. टाइप 1 और उन्नत चरण के टाइप 2 डायबीटीज के सभी मरीज ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन पर निर्भर रहते हैं. एक हार्मोन जो आम तौर पर अग्न्याशय द्वारा स्रावित होता है. अक्सर यह इंजेक्शन के माध्यम से किया जाता है जिसे रोजाना लगाने की आवश्यकता होती है.

आईआईटी भिलाई के वैज्ञानिकों ने स्मार्ट इंसुलिन का किया आविष्कार

यह प्रक्रिया रोगी के लिए असुविधाजनक और दर्दनाक है और इससे हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्लड शुगर लेवल का खतरा भी होता है, जो घातक हो सकता है. आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. सुचेतन पाल के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने शिव नादर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर ‘स्मार्ट इंसुलिन’ विकसित करने पर काम किया है. यह फॉर्मूलेशन जैव प्रचुर सामग्रियों से विकसित किया गया है और इसने डायबीटीज के उपचार में काफी सफल संभावनाएं दिखाई हैं.

जानिए स्मार्ट इंसुलिन की खासियत

इस अध्ययन में विकसित सामग्री दो दिनों के लिए इंसुलिन जारी करती है. जबकि नियमित इंसुलिन 12 घंटे तक काम करता है. वहीं मानव परीक्षण में जाने से पहले इसे डायबीटिक चूहों में परीक्षण कर के देखा गया था. यदि मानव परीक्षण सफल होता है. तो रोगियों के इंसुलिन इंजेक्शन की आवृत्ति कम हो जाएगी और उनके स्वास्थ्य में सुधार की संभावना होगी. इस आशाजनक फॉर्मूलेशन का मूल्यांकन कम लागत और लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन और मनुष्यों में संभावित कृत्रिम अग्न्याशय के लिए किया जाएगा. यह शोध आईआईटी भिलाई, एचडीएफसी-सीएसआर अनुदान, डीएसटी और डीबीटी इनोवेटिव यंग बायोटेक्नोलॉजिस्ट अवार्ड द्वारा किया गया है.

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