ऐसे करें देवता, पिता, रिश्तेदार को प्रसन्न, आचार्य चाणक्य ने बताई ये नीति
आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र के तहत कुछ लोगों को प्रसन्न करने की उपायों के बारे में भी बताया है। चाणक्य ने Chanakya Niti में बताया है कि देवता, सज्जन व्यक्ति और पिता को कैसे खुश किया जा सकता है, वहीं उन्होंने यह भी बताया कि रिश्तेदारों को यदि प्रसन्न करना है तो उसके लिए क्या किया जाना चाहिए। आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में इस बात को समझाया है –
स्वभावेन हि तुष्यन्ति देवाः सत्पुरुषाः पिता।
ज्ञातयः स्नानपानाभ्यां वाक्य दानेन पण्डिताः।।
आचार्य चाणक्य ने Chanakya Niti में बताया कि देवता, सज्जन और पिता स्वभाव से संतुष्ट होते हैं। वहीं दूसरी ओर रिश्तेदार या बन्धु-बान्धव अच्छे खानपान से जबकि ज्ञानी और विवेकशील व्यक्ति मधुर बातों से ही प्रसन्न हो जाते हैं। Aacharya Chanakya ने कहा है कि देवता, सज्जन व्यक्ति और पिता केवल व्यक्ति के स्वभाव को देखते हैं। पिता अपने पुत्र के स्वभाव से ही प्रसन्न होता है। रिश्तेदार, बन्धु बान्धव अच्छे खानपान से खुश रहते हैं। यदि रिश्तेदारों की अच्छी आवभगत की जाए तो वह प्रसन्न रहते हैं और विद्वान मीठी बातों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
अहो बत विचित्राणि चरितानि महात्मनाम् ।
लक्ष्मीं तृणाय मन्यन्ते तद्भारेण नमन्ति च।।
Chanakya Niti में आचार्य चाणक्य ने आगे इस श्लोक में कहा है कि महात्माओं और सज्जनों का चरित्र काफी विचित्र होता है। वे धन को तिनके के समान समझते हैं, परंतु तब उसके भार से वह झुक जाते हैं, अर्थात विनम्र बन जाते हैं जब वह आता है। चाणक्य के मुताबिक सज्जन धन को तिनके के समान अर्थात अर्थहीन समझते हैं, लेकिन यदि इनके पास धन आ जाए तो वे और भी नम्र हो जाते हैं। वे उसी प्रकार झुक जाते हैं, जिस प्रकार फलों से लदे हुए वृक्ष की टहनियां नम हो जाती हैं।
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत् सुखम् ।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिसका किसी के प्रति प्रेम होता है, उसी से उसको भय भी होता है। स्नेह अथवा प्रेम ही दुख का आधार है। स्नेह ही सारे दुखों का मूल कारण है, ऐसे में स्नेह बन्धनों को त्याग कर सुखपूर्वक रहने की कोशिश हमेशा करते रहना चाहिए।