कर्ज से मुक्ति के लिए मंगलवार को करें इस स्‍तोत्र का पाठ

सनातन पंचांग और ज्योतिषशास्त्र में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी ग्रह से संबधित माना जाता है। यहां तक की उस दिन का नाम भी उस ग्रह के नाम पर ही रखा गया है। सोमवार का दिन सोम अर्थात चंद्रमा के नाम पर है तो वहीं मंगलवार का दिन मंगल ग्रह को समर्पित है। इस दिन मंगल ग्रह और उनके इष्ट देवता हनुमान जी के पूजन का विधान है। ग्रहों के सेनापति मंगल एक आक्रामक ग्रह है।

यह मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है। मंगल मकर राशि में उच्च का और कर्क राशि में नीच का होता है। यह सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति के साथ मित्रवत है। यह शुक्र, शनि और राहू के साथ तटस्थ है। बुध और केतु मंगल के शत्रु हैं। सूर्य और बुध के गोचर में मंगल शुभ फल देता है। सूर्य और शनि के गोचर में मंगल अशुभ फल देता है। राहु से प्रभावित होने पर मंगल कमजोर होता है।

खगोल विज्ञान के अनुसार, मंगल हमारे सौर मंडल का चौथा ग्रह है, जो हमारी पृथ्वी के बगल का ग्रह है। ज्योतिष शास्त्र में, मंगल साहस, शक्ति, घर, जमीन जायदाद और अन्य चीजों के अलावा दुश्मनों का प्रतिनिधित्व करता है। चिकित्सा ज्योतिष में, मंगल (मंगल) अन्य बातों के अलावा रक्त संबंधी समस्याओं, रक्तचाप और दुर्घटनाओं को नियंत्रित करता है।

ज्योतिष बताते हैं कि यदि कुंडली में मंगल को बलवान बनाना है तो नीचे दिए इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। वहीं, मंगल स्त्रोत का नियमित पाठ करने से बड़े से बड़े कर्ज से जल्द मुक्ति मिल जाती है। इस स्तोत्र के पाठ से हनुमानजी आपको संसार के सभी तरह के ऋण से मुक्ति दिला देते हैं। इसलिए हनुमानजी का ध्यान करते हुए मंगल स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

मंगल स्तोत्र

रक्ताम्बरो रक्तवपु: किरीटी चतुर्मुखो मेघगदी गदाधृक्।

धरासुत: शक्तिधरश्र्वशूली सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त: ।।1।।

ॐमंगलो भूमिपुत्रश्र्व ऋणहर्ता धनप्रद:।

स्थिरात्मज: महाकाय: सर्वकामार्थसाधक: ।।2।।

लोहितो लोहिताऽगश्र्व सामगानां कृपाकर:।

धरात्मज: कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दन: ।।3।।

अऽगारकोतिबलवानपि यो ग्रहाणंस्वेदोदृवस्त्रिनयनस्य पिनाकपाणे:।

आरक्तचन्दनसुशीतलवारिणायोप्यभ्यचितोऽथ विपलां प्रददातिसिद्धिम् ।।4।।

भौमो धरात्मज इति प्रथितः प्रथिव्यांदुःखापहो दुरितशोकसमस्तहर्ता।

न्रणाम्रणं हरित तान्धनिन: प्रकुर्याध: पूजित: सकलमंगलवासरेषु ।।5।।

एकेन हस्तेन गदां विभर्ति त्रिशूलमन्येन ऋजुकमेण।

शक्तिं सदान्येन वरंददाति चतुर्भुजो मंगलमादधातु ।।6।।

यो मंगलमादधाति मध्यग्रहो यच्छति वांछितार्थम्।

धर्मार्थकामादिसुखं प्रभुत्वं कलत्र पुत्रैर्न कदा वियोग: ।।7।।

कनकमयशरीरतेजसा दुर्निरीक्ष्यो हुतवह समकान्तिर्मालवे लब्धजन्मा।

अवनिजतनमेषु श्रूयते य: पुराणो दिशतु मम विभूतिं भूमिज: सप्रभाव: ।।8।।

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