वाशिगठन : वैज्ञानिकों का दावा है कि कामो’ओलेवा नामक एक एस्टेरॉइड पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है। यह चांद का टुकड़ा हो सकता है। कामो’ओलेवा को 2016 में हलेकला ऑब्जर्वेटरी में पैन-स्टार्स के साथ खोजा गया था। इसकी विशेष बात यह है कि इसकी कक्षा समय के साथ बदलती रहती है। लेकिन इस बदलाव के बाद भी यह हमेशा पृथ्वी के समीप ही रहता है। इसकी सतह भी अलग है। सिलिकेट की मौजूदगी की वजह से यह चंद्रमा की तरह ही प्रकाश को परावर्तित (पीछे) करता है।
कामो’ओलेवा अपोलो समूह में सबसे छोटा, सबसे करीब और सबसे स्थिर है। ये चंद्रमा का ही एक हिस्सा हो सकता है। शोध के मुख्य लेखक एरिजोना यूनिवर्सिटी में भौतिकी विभाग से जोस डैनियल कास्त्रो-सिसनेरोस ने कहा कि कभी-कभी, सोलर सिस्टम में छोटे पिंड सूर्यकेंद्रित कक्षाओं में नहीं चलते, बल्कि ऑर्बिटल रेजोनेंस की वजह से वे किसी विशाल ग्रह की कक्षा साझा करते हैं।
उल्कापिंड के प्रभाव से हुआ अलग
शोध में कहा गया है कि इसकी पृथ्वी जैसी कक्षा और चंद्रमा के जैसे दिखने वाला यह हिस्सा चंद्रमा का ही हो सकता है। जो किसी उल्कापिंड प्रभाव से सतह से अलग हो गया होगा। इस विषय में अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने अलग-अलग तरह की खगोलीय घटनाओं का अनुकरण किया।
चंद्रमा के क्रेटरों का अध्ययन
इसके अलावा चंद्रमा की सतह पर मौजूद क्रेटरों का भी अध्ययन किया गया और उसकी तुलना भी कामो’ओलेवा से की गई। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे भविष्य में अभी यह पता लगाना होगा कि चंद्रमा पर बना कौन सा खास गड्ढा कामो’ओलेवा का स्रोत हो सकता है।