कोंडागांव की बेटियां हॉकी स्टीक से साध रहीं लक्ष्य, बस्तर ओलम्पिक से हुनर को मिल रही नई उड़ान

संभाग स्तरीय बस्तर ओलम्पिक में मर्दापाल क्षेत्र की बेटियां हॉकी में दिखाएंगी अपना जौहर

रायपुर : कभी माओवाद हिंसा के कारण भय और असुरक्षा के लिए पहचाने जाने वाला कोंडागांव जिला का मर्दापाल क्षेत्र आज खेल के क्षेत्र में नई पहचान बना रहा है। यहाँ की बेटियाँ हॉकी के मैदान पर अपनी मेहनत और हौसलों के दम पर जिले का नाम रोशन कर रही हैं। मर्दापाल क्षेत्र के सुदूरवर्ती गाँवों से आने वाली छात्राएँ अब बस्तर ओलम्पिक जैसे बड़े मंच पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला मर्दापाल में अध्ययनरत और प्री-मैट्रिक कन्या छात्रावास में रहकर पढ़ाई करने वाली संगीता कश्यप पिछले तीन वर्षों से हॉकी खेल रही हैं।

वनांचल ग्राम कुदुर की रहने वाली संगीता बताती हैं कि हॉकी ने उन्हें हिम्मत, अनुशासन और लक्ष्य के प्रति समर्पण सिखाया है। पढ़ाई के साथ खेल को संतुलित करते हुए वे एक दिन राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम रोशन करने का सपना देखती हैं। इसी विद्यालय में कक्षा सातवीं की छात्रा रमली कश्यप भी प्री-मैट्रिक कन्या छात्रावास में रहकर अपनी शिक्षा और खेल दोनों संवार रही हैं। ग्राम कुधुर से ताल्लुक रखने वाली रमली जब पांचवीं कक्षा में थीं, तभी उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। वह हंसते हुए बताती हैं “एक दिन मैं होस्टल के बगल वाले मैदान में गई, जहाँ हमारी सीनियर दीदी हॉकी खेल रही थीं। उन्हें देखकर मैंने भी हॉकी उठाई और फिर यह खेल मेरी पसंद बन गया।” कांति बघेल, कक्षा 8वीं, प्री-मैट्रिक कन्या छात्रावास की ही एक अन्य प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। वे ग्राम बड़े कुरुशनार की रहने वाली हैं। खेल के प्रति उनका समर्पण उन्हें प्रतिदिन अभ्यास के लिए प्रेरित करता है। कक्षा सातवीं की दीपा कश्यप भी ग्राम कुधुर से आने वाली एक और उभरती हुई खिलाड़ी हैं। दीपा अपने खेल प्रदर्शन से टीम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

इसी तरह ग्राम दिगानार की सुनीता नेताम शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मर्दापाल में अध्ययनरत हैं और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में पहले भी खेल चुकी हैं। सुनीता का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर राज्य का प्रतिनिधित्व करें। कक्षा 12 वीं की छात्रा सुलंती कोर्राम बोरगांव की निवासी हैं। हॉकी की दुनिया में उनका अनुभव टीम के लिए बेहद उपयोगी है। सुलंती चार बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं और झारखंड में आयोजित नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में भी अपने खेल कौशल का प्रदर्शन कर चुकी हैं। उनका कहना है “खेल ने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया है। मैं चाहती हूँ कि हमारे गाँव की और भी लड़कियाँ खेल के माध्यम से खुद को आगे लाएँ।”

इसी कक्षा में अध्ययनरत ग्राम कबेंगा की प्रिया नेताम भी कई बार स्टेट स्तर पर खेल चुकी हैं। उनका सपना है कि वे भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा बनें। कक्षा नौवीं की राजन्ती कश्यप, जो शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मर्दापाल में पढ़ती हैं, और कक्षा 10 वीं की खेमेश्वरी सोढ़ी ग्राम खोडसानार की उभरती खिलाड़ी हैं। दोनों छात्राएँ निरंतर अभ्यास करते हुए आने वाली प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रयासरत हैं।

बस्तर ओलम्पिक सुदूर अंचल की प्रतिभा के लिए सुनहरा मंच

बस्तर संभाग में आयोजित होने वाला बस्तर ओलम्पिक सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि उन प्रतिभाओं के लिए सुनहरा अवसर है जिन्हें पहले मैदान तो दूर, खेल की कल्पना तक मुश्किल थी। माओवाद को ख़त्म कर अंतिम व्यक्ति तक शासन की नीतियों को पहुँचाने और जनहितकारी योजनाओं से लोगों को जोड़ने की पहल ने आज आदिवासी अंचलों में छिपे प्रतिभाओं को एक मंच प्रदान किया है। हॉकी, फुटबॉल, एथलेटिक्स, कबड्डी, तीरंदाजी जैसे अनेक खेलों में बच्चे बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। बीते वर्ष मर्दापाल की यह हॉकी टीम जिला स्तरीय बस्तर ओलम्पिक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान तथा संभाग स्तरीय प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान हासिल कर चुकी है।इस सफलता ने न केवल बालिकाओं का आत्मविश्वास बढ़ाया है बल्कि उनके माता-पिता और शिक्षकों को भी गौरवान्वित किया है।

इस बार हमारा लक्ष्य पहला स्थान

आने वाले दिनों में यह टीम फिर से संभाग स्तरीय बस्तर ओलम्पिक में हिस्सा लेने जा रही है। टीम के सभी सदस्य पूरे जोश और मेहनत के साथ तैयारी में जुटे हुए हैं। टीम की सभी खिलाड़ी एक सुर में कहती हैं “इस बार हम प्रथम स्थान के साथ जिले का नाम रोशन करेंगे।” बच्चों की इस तैयारी को देखकर माता-पिता बेहद उत्साहित हैं। वे इस बात से खुश हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई के साथ खेल में भी भविष्य तलाश रहे हैं। जहां पहले बेटियों की पढ़ाई तक अधूरी रह जाती थी, वहीं आज वही बेटियाँ खेल के मैदान में जिला और राज्य स्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं।

माओवाद प्रभावित क्षेत्र से खेल के मैदान तक की सफर में मर्दापाल, कुदुर, दिगानार ये वे गाँव हैं जिनका नाम कभी माओवादी घटनाओं के लिए जाना जाता था, पर आज परिस्थितियाँ बदल रही हैं। शासन और प्रशासन के प्रयासों से शिक्षा, खेल और विकास यहाँ की नई पहचान बन रहे हैं। स्कूलों में खेल सामग्री की उपलब्धता, प्रशिक्षकों की नियुक्ति और छात्रावास जैसी सुविधाओं ने बच्चों को अपने सपनों को आकार देने का मौका दिया है। इन बेटियों की मेहनत यह साबित कर रही है कि अवसर मिले तो भविष्य में जिले के दूरस्थ अंचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर  भी अपनी पहचान बना सकते हैं। कोंडागांव जिले की ये बेटियाँ न सिर्फ अपने परिवार का गर्व बढ़ा रही हैं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणा बन रहीं हैं। हॉकी का यह हुनर आने वाले समय में बस्तर की तस्वीर बदल सकता है। यह कहानी सिर्फ खेल की नहीं३बल्कि बदलते बस्तर की है, जहाँ बेटियाँ अब हाकी स्टिक थामकर अपने लक्ष्य को साध रही हैं।

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