छूटा कच्ची दीवारों का दर्द, मिला पक्के छत का सुकून : गणेशी पैकरा की पीएम आवास योजना से बदली जिंदगी

रायपुऱ : छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के लैलूंगा विकासखंड के केराबहार ग्राम पंचायत में रहने वाली श्रीमती गणेशी पैकरा और उनके परिवार के लिए पक्का मकान होना सपने जैसा था। यह परिवार लंबे समय से एक कच्चे मकान में गुजर-बसर कर रहा था, जिसकी जर्जर दीवारें और टपकती छत हर बरसात में उनके लिए आफत बन जाती थीं। प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) ने उनके जीवन में स्थायित्व, सुरक्षा और सम्मान का एक नया अध्याय जोड़ा है।

गणेशी पैकरा उन दिनों को याद करती हुई बताती हैं कि बरसात में कभी दीवार गिरने का डर, तो कभी बच्चों को सुरक्षित जगह पर सुलाने की चिंता रहती थी। उस समय हमें नहीं लगता था कि कभी पक्का घर भी नसीब होगा। उनका कच्चा आवास हर बरसात में उनके लिए एक नया इम्तिहान बन जाता था, जहां उन्हें और उनके परिवार को अनिश्चितता और भय के साये में जीना पड़ता था, लेकिन पीएम आवास योजना ने उनके जीवन में उम्मीद की एक नई किरण जगाई।

उन्हें इस योजना के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने आवेदन किया। वर्ष 2024-25 में श्रीमती गणेशी पैकरा को योजना के तहत आवास निर्माण के लिए स्वीकृति मिली। उन्हें शासन से 1 लाख 20 हजार रुपये की आर्थिक सहायता मिली। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपना घर बनाने के लिए 90 दिनों की मनरेगा मजदूरी भी की जिससे गणेशी को 21 हजार 690 रुपये भी मिले। उन्होंने इस राशि का सदुपयोग करते हुए एक मजबूत और सुसज्जित पक्का मकान तैयार किया।

श्रीमती पैकरा भावुक होकर कहती हैं, आज हमारे पास अपना पक्का घर है, जिसमें बारिश, धूप और सर्दी से कोई डर नहीं। हमने जो भी सहायता राशि मिली, उसका एक-एक पैसा सोच-समझकर उपयोग किया। आज मेरे बच्चे सुरक्षित हैं, हमारे घर की छत नहीं टपकती और हम चौन की नींद सोते हैं। इस नए आवास ने न केवल उनके परिवार को भौतिक सुरक्षा प्रदान की है, बल्कि उन्हें मानसिक शांति और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर भी दिया है।

रायगढ़ जिले का अनुकरणीय प्रयास

गौरतलब है कि गरीब परिवारों के खुद के पक्के मकान का सपना पूरा करने में रायगढ़ जिला लगातार पूरे प्रदेश में आगे चल रहा है। रायगढ़ जिले ने वर्ष 2024-25 में स्वीकृत मकानों में से प्रदेश में सबसे पहले 25,000 आवास पूर्ण कराने की उपलब्धि हासिल की है। पीएम आवास निर्माण न सिर्फ पक्के मकानों का सपना पूरा कर रहा है, बल्कि यह स्व-सहायता समूहों की महिलाओं के लिए रोजगार का अवसर भी लेकर आया है। आवास निर्माण में सेटरिंग प्लेट लगाकर स्व-सहायता समूह की महिलाएं लखपति दीदी बनने की ओर अग्रसर हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है।

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