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CG : ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने वन विभाग की अनूठी पहल, संस्कृति और प्रकृति का संगम बना पर्यावरण परिक्रमा पथ

रायपुर : छत्तीसगढ़ में ईको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए लगातार साय सरकार नए-नए प्रयोग कर रही है. इसी कड़ी में वन विभाग की ओर से अनूठी पहल करते हुए बनाया गया पर्यावरण परिक्रमा पथ संस्कृति और प्रकृति का संगम बन गया है. यह पथ वन संरक्षण, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर को एक साथ जोड़ता है.

पर्यावरण परिक्रमा पथ

डोंगरगढ़ अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है. यहां हर साल हजारों तीर्थयात्री और पर्यटक मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर, प्रज्ञागिरी के बौद्ध स्थल और जैन तीर्थ केंद्र जैसे पवित्र स्थलों पर आते हैं. 2016-17 में डोंगरगढ़ के पहाड़ी वन को विकसित किया गया. यहां पर्यावरण परिक्रमा पथ बनाया गया. इस लिथो-फ्लोरल वॉकिंग ट्रेल ने छत्तीसगढ़ वन विभाग के सतत पर्यावरण प्रबंधन के समग्र दृष्टिकोण को उदाहरण के रूप में पेश किया है. पर्यावरण परिक्रमा पथ लगभग 133 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जो पहाड़ी वन कक्ष क्रमांक 475 और 483 में स्थित है. यह पथ वन संरक्षण, आध्यात्मिकता, धर्म और सांस्कृतिक विरासत के गहरे अंतर्संबंध को दर्शाता है.

ईको-टूरिज्म का प्रमुख केंद्र

पर्यावरण परिक्रमा पथ ईको-टूरिज्म का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. पथ पर आगंतुकों के लिए सुंदर लैंडस्केपिंग, कंक्रीट सीढ़ियाँ, चट्टानी मार्ग, सोलर लाइटिंग और कोलकाता के हावड़ा ब्रिज से प्रेरित पुल जैसे आकर्षण एवं सुविधाएं मौजूद हैं. पथ के साथ बड़ी चट्टानों को छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के कलात्मक चित्रों से सजाया गया है, जो आगंतुकों के अनुभव को और समृद्ध करते हैं.

सांस्कृतिक और धार्मिक रूप

वन विभाग ने इस क्षेत्र की विशिष्टता को बढ़ाने के लिए कई सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण ‘दैव वृक्षों’ (पवित्र पेड़ों) को लगाया. इनमें बरगद, कल्पवृक्ष, पीपल, कपूर, नीम, रुद्राक्ष, बेल, चंदन, महुआ, कुसुम, पारिजात, चंपा, बांस, आंवला, हर्रा, बहेड़ा और रामफल जैसे पेड़ शामिल हैं. इस पथ की आध्यात्मिकता को और समृद्ध करने के लिए छत्तीसगढ़ के लोगों द्वारा पूजे जाने वाले 31 देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक मूर्तियां भी पर्यावरण परिक्रमा पथ पर स्थापित की गई हैं.

31 देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक मूर्तियां

इनमें ताला गांव के रुद्र शिव, बारसूर के श्री गणेश जी, गंडई की मां नर्मदा माता, साजा की मां महामाया, धमतरी की मां अंगार मोती, अमलेश्वर की मां पीतांबरा, रतनपुर की मां महामाया, दंतेवाड़ा की मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी देवी, महासमुंद की मां खल्लारी माता, नारायणपुर की मां मावली माता, जांजगीर चांपा की मां महाकाली अड़भार, गरियाबंद की मां घाटमई घटा रानी, झलमला की मां गंगा मइया, भोरमदेव के श्री महाकाल भैरव, बालोदाबाजार के जोगीदिपा की मां चंडी दाई, बागबहरा की मां चंडी माता, धमतरी की मां बिलाई माता, जांजगीर की मां चंद्रहासिनी और शिवरीनारायण की मां अन्नपूर्णा माता शामिल हैं. ये मूर्तियाँ छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं और प्रकृति के संगम के साथ आगंतुकों के लिए एक अद्वितीय आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक अनुभव को सजीव करती हैं.

इस पथ का एक और महत्वपूर्ण पहलू है. वन विभाग द्वारा पहाड़ी वन कक्षों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम. अतिक्रमण, अवैध गतिविधियों और वन ह्रास जैसी चुनौतियों का समाधान करने के लिए चेन-लिंक बाड़बंदी, मृदा और जल संरक्षण एवं गैप प्लांटेशन जैसे उपाय किए गए. इन प्रयासों के माध्यम से वन विभाग ने इस क्षेत्र में जंगल की आग पर नियंत्रण पाने और मृदा कटाव को रोकने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की. इसके परिणामस्वरूप यह क्षेत्र जैव विविधता का एक संपन्न केंद्र बन गया है, जो जंगली सुअर, खरगोश, सरीसृप और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आवास प्रदान करता है.

सामाजिक-आर्थिक लाभ

इस पहल ने स्थानीय समुदाय को भी महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक लाभ प्रदान किए हैं. इस पथ का प्रबंधन ग्राम वन सुरक्षा समिति रजकट्टा, जो स्थानीय ग्रामीणों की एक संयुक्त वन प्रबंधन समिति (JFMC) है, द्वारा किया जाता है. यह समिति प्रवेश शुल्क के रूप में मात्र 10 रुपए एकत्र करती है, जिसका उपयोग संरक्षण प्रयासों, सामुदायिक कल्याण और आजीविका के लिए किया जाता है. समिति की एक जनजातीय महिला सदस्य ईश्वरी नेताम ने कहा, ‘प्रवेश शुल्क ने मेरे जैसे ग्रामीणों के लिए आय के अवसर उत्पन्न किए हैं एवं महिलाओं को सशक्त बनाया है.’

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