नई दिल्ली। पत्रकार सौम्या विश्वनाथन हत्याकांड मामले में कोर्ट ने आज फैसला सुनाते हुए सभी 5 आरोपियों को दोषी करार दिया है। दिल्ली की साकेत कोर्ट ने मकोका के तहत 5 आरोपियों को सजा सुनाई जाएगी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवींद्र कुमार पांडे ने बचाव और अभियोजन पक्ष की दलीलें पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और आज इस मामले में 5 आरोपियों रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत मलिक, अजय कुमार और अजय सेठी को हत्या का दोषी ठहराया है।
ये सभी आरोपी मार्च 2009 से हिरासत में हैं। पुलिस ने इन पांचों आरोपियों के खिलाफ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) लगाया था। आपको बता दें कि सौम्या विश्वनाथन की 30 सितंबर 2008 को तब गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वह सुबह 3 बजे के करीब कार से घर लौट रही थी। करीब 13 साल केस चलने के बाद आज इस मामले में साकेत कोर्ट ने फैसला सुनाया है।
जानें क्या था सौम्या विश्वनाथन मर्डर केस
30 सितंबर 2008 को पत्रकार सौम्या विश्वनाथन दक्षिण दिल्ली के वसंत कुंज इलाके के पास अपनी कार में मृत पाई गई थीं। शुरू में माना गया कि कार दुर्घटना में उनकी मौत हुई, लेकिन फोरेंसिक रिपोर्ट में पता चला कि उनके सिर में गोली मारी गई थी।
पुलिस जांच में पता चला कि सौम्या विश्वनाथन देर रात घर लौट रही थी। आरोपी उनका पीछा कर रहे थे और चलती कार में उन्हें गाली मारी गई।
सीसीटीवी फुटेज के आधार पर जांच आगे बढ़ी। मार्च 2009 में दिल्ली पुलिस ने दो संदिग्धों, रवि कपूर और अमित शुक्ला को एक अन्य मामले (कॉल सेंटर कार्यकारी अधिकारी जिगिशा घोष की हत्या) में शामिल होने के लिए गिरफ्तार किया।
पूछताछ के दौरान कपूर और शुक्ला ने सौम्या की हत्या की बात भी कबूल की। जांच में यह भी पता चला कि सीसीटीवी फुटेज में दिखी कार का इस्तेमाल दोनों हत्याओं में किया गया था।
जून 2010 में दाखिल हुई थी चार्जशीट
जून 2010 में दिल्ली पुलिस ने रवि कपूर, अमित शुक्ला और दो अन्य संदिग्धों, बलजीत मलिक और अजय सेठी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। सौम्या मामले में मुकदमे 16 नवंबर 2010 को साकेत कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी।
सुनवाई के दौरान हत्यारों की बंदूक से गोलियों का मिलान, सीसीटीवी फुटेज और आरोपी के कबूलनामे सहित प्रमुख फोरेंसिक साक्ष्य प्रस्तुत किए गए।
19 जुलाई 2016 को साकेत कोर्ट ने मामले में सुनवाई पूरी कर ली और अगली सुनवाई के लिए अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। तब से विभिन्न कानूनी जटिलताओं के कारण निर्णय को कई बार टाला गया।