माली सीमा पर नाइजर के 17 सैनिकों की मौत, क्या सैन्य तख्तापलट वाले देश में शुरू हो गया युद्ध?

नियामी: सैन्य तख्तापलट वाले देश नाइजर के रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि माली की सीमा के पास सशस्त्र समूहों के हमले में कम से कम 17 सैनिक मारे गए हैं। मंगलवार देर रात जारी एक बयान के अनुसार बोनी और टोरोडी के बीच जा रही नाइजर आर्म्ड फोर्सेज की एक टुकड़ी कोउटौगौ शहर के पास एक आतंकवादी हमले का शिकार हो गई। हमले वाली जगह टोरोडी के 52 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस हमले में 20 अन्य सैनिक घायल भी हो गए हैं। इन सैनिकों को राजधानी नियामी लेकर जाया गया है। सेना ने कहा है कि पिछे हटने के दौरान 100 से अधिक हमलावरों को मार गिराया गया है।

नाइजर की सीमा पर आतंकियों का बोलबाला

पिछले एक दशक से माली, बुर्किना फासो और नाइजर की सीमा पर आतंकवादी समूहों का बोलबाला है। ये आतंकी मध्य माली, उत्तरी बुर्किना फासो और पश्चिमी नाइजर की सीमा वाले साहेल क्षेत्र में सक्रिय हैं। इस क्षेत्र में अल कायदा और आईएसआईएस से जुड़े अलग-अलग आतंकी समूह जबरदस्त हिंसा फैला रहे हैं। इन आतंकी समूहों की हिंसा के कारण ही तीनों देशों में सैन्य तख्तापलट को बढ़ावा मिला है। जिस कारण 26 जुलाई को नाइजर में ताजा तख्तापलट हुआ है, जब पश्चिम समर्थित राष्ट्रपति बजौम को हटा दिया गया।

जबरदस्त हिंसा की चपेट में नाइजर

दक्षिणपूर्व नाइजर भी उत्तरपूर्वी नाइजीरिया से आने वाले सशस्त्र समूहों का लक्ष्य है। 2010 में बोको हराम ने इस क्षेत्र में एक अलग इस्लामी देश स्थापित करने का अभियान शुरू किया था, जिस कारण पूरा इलाका जबरदस्त हिंसा की चपेट में है। इस हिंसा के कारण ही नाइजर में तख्तापलट करने वाले नेताओं ने कहा था कि बजौम को देश में असुरक्षा की भावना के कारण हटाया गया था। नाइजर में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और खराब प्रशासन के कारण तख्तापलट की कोशिशों को बल मिला।

तख्तापलट से नाइजर की सेना को नुकसान

नाइजर की सैन्य सरकार ने तख्तापलट के बाद फ्रांसीसी सेना के साथ समझौते को रद्द कर दिया है। लेकिन, अब आशंका जताई जा रही है कि इस फैसले से नाइजर के लोगों का जीवन और अधिक कठिन हो सकता है। इस समझौत से हटने से नाइजर के लिए रक्षा उपकरण, हथियार प्राप्त करने और साहेल में इन सशस्त्र समूहों के हमलों से निपटने में मुश्किलें आ सकती हैं। उसे इन सब चीजों के लिए अब माली और बुर्किना फासो जैसे देशों और भाड़े के सैनिकों पर निर्भर रहना पड़ सकता है।

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